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एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति।
एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति।
- ऋग्वेद [१.१६४.४६]
सत्य तो एक ही है लेकिन विद्वतजन उसे बहुविध प्रकार से समझते हैं। / एक ही ब्रह्म है, जो विविध नामों से विख्यात है।
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आयुर्नश्यति पश्यतां प्रतिदिनं याति क्षयं यौवनं
प्रत्यायान्ति गताः पुनर्न दिवसाः कालो जगद्भक्षकः।
लक्ष्मीस्तोयतरङ्गभङ्गचपला विद्युच्चलं जीवितं
तस्मान्मां शरणागतं शरणद त्वं रक्ष रक्षाधुना।।
- शिवापराधक्षमापनस्तोत्रम् [१३]
प्रतिदिन आयु नष्ट हो रही है, यौवन का क्षय हो रहा है।
बीता हुआ दिन फिर वापस नहीं आता, काल संसार का भक्षक है।
लक्ष्मी (धन-संपत्ति) जल की तरंग-भंग की भांति चपला है, जीवन विद्युत के समान क्षणभंगुर है।
इसलिए, आप जो सभी को शरण देते हैं, अब इस शरणागत की रक्षा कीजिए।
(Every day life is seen reducing and youthfulness decaying. Days that are gone never come back. Time is devourer of the world. Wealth is as fickle as the breaking of the waves of water, and life as transient as lightning. Therefore, you who gives refuge to all, protect me now who has come to you for refuge.)
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ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविः ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥
- भागवत गीता [४.२४]
- जिस चम्मच से अग्नि में आहुति दी जाती है, वह ब्रह्म है। जिन (घी आदि) पदार्थों की आहुति दी जाती है, वे भी ब्रह्म हैं। जिस अग्नि में आहुति दी जाती है, वह भी ब्रह्म है। आहुति देने वाला भी ब्रह्म है। उस ब्रह्मरूपी कर्म में समाधि को प्राप्त योगी को मिलने वाला फल भी ब्रह्म ही है।
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