Monday, October 30, 2017

[#History] Rare Image of Mary Queen of Scots Found

You must know about Queen Elizabeth I of England; she was Queen of England and Ireland from 1558 to 1603. She was the last ruler from Tudor Dynasty of England because she did not marry. And hence she is also called the Virgin Queen.

Mary Stuart, Queen of Scots also had a claim on the throne of England. In the eyes of many Catholics, Elizabeth was illegitimate, and Mary Stuart, as the senior descendant of Henry VIII's elder sister, was the rightful queen of England.

Mary was imprisoned by Elizabeth in 1568 where she remained for 19 years. In 1587, she was accused of being part of a plot to murder Queen Elizabeth and executed by beheading. After beheading her, the executioner held her head in his hand and shouted "God save the Queen." Suddenly the head fell on earth while the hair remained in his hand - it turned out to be a wig since Mary had lost her hair due to her travails during imprisonment!

Now, "a rare portrait of Mary, Queen of Scots, as she would have looked as she languished in captivity in England some four-and-a-half centuries ago, has been discovered underneath a later painting of a Scottish nobleman.

In a sense, the newly discovered portrait of her mirrors that tragedy – for the project to paint her was abandoned halfway through, almost certainly as a result of her trial and execution."


- Rahul


Saturday, October 28, 2017

History: The Legend of Padmavati and Epic Poem of Malik Muhammad Jayasi

Malik Muhammad Jayasi was a Sufi poet who wrote in Avadhi language. Born in Jayas near Raibareli, UP, he lived during 1477-1542 and wrote an epic poem "Padmavat" in 1540. He wrote it 237 years after the historical event of Alauddin Khilji's conquest of Chittor. Alauddin Khalji (1266-1316) of Khalji dynasty of Delhi Sultanate had invaded Chittor in 1303 which was ruled by Rajput king Ratnasiṃha of Guhila dynasty.

An article by Ruchika Sharma on Scroll.in makes strong points on the actual history. You can read it here.

“I have made up the story and related it,” are the words with which Malik Muhammad Jayasi ends his Awadhi masnavi, Padmavat.
Jayasi’s masnavi, completed in 1540, drew heavily on an earlier source, Nayachandra Suri’s Hammira Mahakavya.
The epic penned by Nayachandra Suri in the 15th century is largely a legendary biography of the 14th-century Chauhana king Hammira Mahadeva. Before Suri committed it to writing, the legend of Hammira’s gallant fight against Khilji’s attack on Chittor was orally transmitted. In the epic, Khilji has to mount a series of three expeditions against Chittor, following Hammira’s refusal to pay tribute to the Delhi sultan, before finally capturing it. The first expedition is inconclusive while the second results in the defeat of the sultanate army by the Rajputs and in the capture of several Muslim women, who are humiliated and forced “to sell buttermilk in every town they pass through”.
Cut to the 16th century, Suri’s dauntless Hammira becomes Jayasi’s Ratan Sen.
Padmavat, however, is not merely a copy of Suri’s work. Jayasi also drew a lot from the current political milieu of his time. For example, Ratan Sen, (1527-’32 AD) who was the rana of Chittor more than 300 years after Khilji’s death, is a contemporary of Jayasi and, hence, his name is borrowed for Padmavat’s hero, a move made perhaps to impress the rana (given the poet’s close association with the Rajputs). Furthermore, captivating tropes employed in the story, such as smuggling Khilji’s army into the Chittor fort through women’s palanquins, was an actual move employed by emperor Sher Shah Suri (Jayasi’s contemporary) in his conquest of Rohtas.
Jayasi quite explicitly mentions that Ratan Sen is an allegory for the human soul, Padmini represents intelligence, Alauddin Khilji is illusion (maya) and Chittor stands for the human body. Thus, the tale is that of the travails that the human soul has to suffer in order to be one with the human mind where both illusion and the human body act as deterrents.
Jayasi’s work is such a marvel of creativity that to claim it as history would be the real “tampering of history”.
Read full article at below link:


You can also read the Epic "Padmavat" here on Kavita Kosh

- Rahul Tiwary

Wednesday, October 25, 2017

छठ पूजा की शुभकामनाएँ

कितना आसान है "शुभ दीपावली" बोलना। जैसे फुलझड़ी की छोर पर लगाई चिंगारी चलती हुई अंत तक पहुँच जाती है। वैसा आसान। जैसे "हैप्पी होली" बोलना और सूखे गालों पर सूखी अबीर लगा देना - और बस हो गया बिध पूरा। जैसे बच्चे ने पानी भरा गुब्बारा छत से नीचे छोड़ दिया और वह नीचे तक पहुँच गया अपने आप - छप्पाक की आवाज के साथ। आसान।

कितना मुश्किल है व्रती को छठ पूजा की शुभकामनाएँ देना। जैसे मोमबत्ती की जलती डोर से कुशल-क्षेम पूछना। जैसे हर साल अपने बच्चों को पुनः जन्म देकर स्वयं भी पुनर्जन्म पाना। छठ के गीतों को गाना। नदी पोखर की घाटों पर जाना।

आज की 'फेमिनिस्ट्स' क्या जानें कि छठ पूजा भारतीय मातृसत्तात्मक समाज की कैसी झलक है। जहाँ व्रती साक्षात् देवी रूप में परिणत हो जाती हो। और जहाँ पुरुष भक्त डाला सर पर उठाए चलते जाएँ।

सभी महान प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ। छठ पूजा में नदी तालाब साक्षात् वाहक बन जाते हैं उस प्राचीन अनवरत सांस्कृतिक भावधारा के। सूर्य की उपासना भी विश्व के प्राचीनतम धार्मिक मान्यताओं में से एक है। पृथ्वी पर ऊर्जा का श्रोत है सूर्य। अगर कोई पूजनीय है तो वो है सूर्य। छठ पूजा एकमात्र ऐसा पर्व है जहाँ उगते के अलावा डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य का वही अर्थ है जो यज्ञ का - दोनों एक और सनातन हैं।

छठ पूजा एक लोक पर्व है जिसे किसी मन्दिर, पुजारियों या ग्रंथों की आवश्यकता नहीं। जितना आसान सुनने में लगता है, है उतना ही कठिन। लोक मान्यताओं से तत्काल परिणाम दायी है।
"छठी मईया" की पूजा होती है। इस अर्थ में ये शक्ति उपासना का भी एक रूप है। देवी भक्ति का एक अभूतपूर्व उदाहरण।

बिहारियों की पहचान है छठ पूजा। घाटों पर देखने से समझ कभी नहीं सकता। ही ट्रेनों की भीड़ से। समझने की चीज ही नहीं है ये। जिसकी माँ ने उसके लिए कभी छठ नहीं किया वो इसका मर्म कभी महसूस नहीं कर सकता।

यह व्रत मानव शरीर को मंदिर बनाकर आत्मा को परमात्मा से एक कर देने का योग है। यह व्रत महानों के बीच महानतम व्रत है।

जय हो छठ पूजा की।


- राहुल तिवारी

Tuesday, October 24, 2017

फेसबुक पर

एक बूढी अम्मा ने फेसबुक पर पोस्ट लिखा - बुढ़ापे की त्रासदी के बारे में। फेसबुक 'कवर' की तस्वीर में तीन बेटे दिख रहे थे। उन्होंने बहुत सामान्य सी बात लिखी। बुढ़ापे में बच्चों द्वारा उपेक्षा का दुःख, अपने ही घर में पराएपन का दुःख, मुँह खोलने पर अपमान का दुःख। उन्होंने बस दुःख लिखा।

बहुत सामान्य सी बात।

पिछली पीढ़ी ने अपना सुख न्योछावर कर अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा दी। आधुनिक संस्कार तो बच्चों ने यूँ ही सीख लिए, बस यूँ ही। पता ही नहीं चला कब। कुछ तन से विदेश चले गए, बाकी बचे मन से पराए हुए। अब एक पूरी-की-पूरी पीढ़ी अकेले और निराशा भरे बुढ़ापे की ओर है। अखबार में यदा कदा बड़े बंगलों में बूढ़ों की एकाकी मौत की खबरें आती हैं। ये भारत के "बेबी-बूमर्स" की पीढ़ी थी। औद्योगीकरण और उदारवाद के बाद सफेद बाल और व्हील चेयर लेने वाली पहली पीढ़ी। अस्सी-नब्बे के दशक में पैदा बच्चे अभी ठीक से समझ भी नहीं पा रहे कि उनकी पिछली पीढ़ी के साथ हो क्या रहा है।

समाधान मुश्किल है।

बूढी अम्मा के यक्ष प्रश्न को सोचूँ तो ये पाता हूँ कि यदि समस्या को परिभाषित किया जा सकता तो समाधान भी बनता। कभी बेटे की गलती होती है तो कभी बाप की। कभी सास की तो कभी बहू की। और कभी सिर्फ परिस्थिति की। एक औरत जो अपनी जवानी में अपने बूढ़े सास ससुर को प्रताड़ित करती थी, खुद के बुढ़ापे में अपने बहू बेटों को कोसती है। एक बहू जिसे अपने बूढ़े माँ बाप से अपार सहानुभूति है, उनसे भी ज्यादा बूढ़े लाचार सास ससुर उसे जीवन पर बोझ लगते हैं। मानव रिश्तों की कोई डोर सुलझी हुई नहीं है। आप किसी एक पक्ष की ओर झुक नहीं सकते वरना दूसरा पक्ष शोषित होने लगता है। तो समाज तंग आकर ऑंखें मूँद लेता है। इसे मूक समर्थन समझना भूल है क्योंकि वो छिपकर सिसकियाँ लेता है।

निष्कर्ष क्या है?

मेरा निष्कर्ष ये है कि चुकि हम भारतीयता को छोड़ने और पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने का हिमालयी निर्णय ले ही चुके हैं तो समाधान भी उसी में है। जब देश विकसित होगा तो उसमें "सामाजिक सुरक्षा" का प्रावधान होगा और तब बूढ़े और कमजोर लोगों को थोड़ी राहत मिलेगी। क्या यह हमारी भीड़तंत्र और जनसँख्या विस्फोट के बीच १०० सालोँ में भी हो पायेगा? नहीं मालूम। लेकिन जबतक नहीं होता ये मानव त्रासदी चलती रहेगी।

यदि आप अभी जवान हैं तो शुक्र मनाइए। हो सके तो बूढ़े माँ बाप की समय रहते सेवा कर लीजिए। आपका बुढ़ापा कैसे बीतेगा कोई नहीं जानता।


- राहुल तिवारी