कितना आसान है "शुभ दीपावली" बोलना। जैसे फुलझड़ी की छोर पर लगाई चिंगारी चलती हुई अंत तक पहुँच जाती है। वैसा आसान। जैसे "हैप्पी होली" बोलना और सूखे गालों पर सूखी अबीर लगा देना - और बस हो गया बिध पूरा। जैसे बच्चे ने पानी भरा गुब्बारा छत से नीचे छोड़ दिया और वह नीचे तक पहुँच गया अपने आप - छप्पाक की आवाज के साथ। आसान।
कितना मुश्किल है व्रती को छठ पूजा की शुभकामनाएँ देना। जैसे मोमबत्ती की जलती डोर से कुशल-क्षेम पूछना। जैसे हर साल अपने बच्चों को पुनः जन्म देकर स्वयं भी पुनर्जन्म पाना। छठ के गीतों को गाना। नदी पोखर की घाटों पर जाना।
आज की 'फेमिनिस्ट्स' क्या जानें कि छठ पूजा भारतीय मातृसत्तात्मक समाज की कैसी झलक है। जहाँ व्रती साक्षात् देवी रूप में परिणत हो जाती हो। और जहाँ पुरुष भक्त डाला सर पर उठाए चलते जाएँ।
सभी महान प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ। छठ पूजा में नदी तालाब साक्षात् वाहक बन जाते हैं उस प्राचीन अनवरत सांस्कृतिक भावधारा के। सूर्य की उपासना भी विश्व के प्राचीनतम धार्मिक मान्यताओं में से एक है। पृथ्वी पर ऊर्जा का श्रोत है सूर्य। अगर कोई पूजनीय है तो वो है सूर्य। छठ पूजा एकमात्र ऐसा पर्व है जहाँ उगते के अलावा डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य का वही अर्थ है जो यज्ञ का - दोनों एक और सनातन हैं।
छठ पूजा एक लोक पर्व है जिसे किसी मन्दिर, पुजारियों या ग्रंथों की आवश्यकता नहीं। जितना आसान सुनने में लगता है, है उतना ही कठिन। लोक मान्यताओं से तत्काल परिणाम दायी है।
"छठी मईया" की पूजा होती है। इस अर्थ में ये शक्ति उपासना का भी एक रूप है। देवी भक्ति का एक अभूतपूर्व उदाहरण।
बिहारियों की पहचान है छठ पूजा। घाटों पर देखने से समझ कभी नहीं आ सकता। न ही ट्रेनों की भीड़ से। समझने की चीज ही नहीं है ये। जिसकी माँ ने उसके लिए कभी छठ नहीं किया वो इसका मर्म कभी महसूस नहीं कर सकता।
यह व्रत मानव शरीर को मंदिर बनाकर आत्मा को परमात्मा से एक कर देने का योग है। यह व्रत महानों के बीच महानतम व्रत है।
जय हो छठ पूजा की।
- राहुल तिवारी
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