मुम्बई के कमला मिल्स अग्निकांड की हृदयविदारक तस्वीरें सामने आ रही हैं। हँसते-खेलते परिवार और बच्चे मिनटों में काल की गोद में समा गए। मृतकों में एक लड़की और उसका परिवार जो बर्थडे सेलिब्रेट कर रहे थे, पर खासी कवरेज है। खबर आते ही दो बातें नोट करने लायक थीं - '1 Above' जहाँ आग लगी वो बस एक रेस्त्रां नहीं एक "पब" है जिसमें 'बार' है और शराब सर्व की जाती है। उसकी निचली फ्लोर पर भी आग फैली और वहाँ 'Mojo's Bistro' नाम का "पब" था। आग रात के साढ़े बारह बजे लगी। बर्थडे सेलिब्रेट करने वाले रात के बारह बजे ही सेलिब्रेट करने गए थे। उन्होंने बारह बजे बर्थडे केक काटा, मोबाइल पर वीडियो बनाया और स्नैपचैट पर शेयर किया। थोड़ी देर में आग लगी और सब खत्म। बर्थडे गर्ल की उस "अंतिम सेलिब्रेशन" के वीडियो को टीवी चैनल्स बार-बार दिखाकर अपनी टीआरपी बढ़ा रहे हैं। जिन चौदह लोगों की मौत हुई उनमें ग्यारह महिलाएँ हैं जो बीस-तीस साल की थीं।
एक समय था जब अच्छे घरों के बच्चे रात में बाहर नहीं जाते थे - लड़कियाँ पब में नहीं जाती थीं - पार्टी घर पर हुआ करती थी - जन्मदिन पर मंदिर में पूजा होती थी - अगर बर्थडे केक कटता तो घर पर पूरे परिवार के साथ - न की मध्य रात्रि में दूसरों के साथ शराब की दुर्गन्ध के बीच किसी पब में।
मुंबई जैसे महानगर के लिए लड़के-लड़कियों का रात के साढ़े बारह बजे घर से दूर पब में जाकर दोस्तों के साथ पार्टी करना एक आम बात होगी। मेरे लिए इस एंगल से सोचना आसान होगा - क्योंकि मैं तो बिहार के एक छोटे शहर के ब्राह्मण शिक्षाविद परिवार में पला-बढ़ा जहाँ मुझे "मॉडर्न" बनने की ललक विरासत में नहीं मिली। पर समस्या ये है कि आज हर शहर मुम्बई बनने की कोशिश में है और हर बच्चा पब में मिड नाईट पार्टी करना चाहता है। कोई जरुरी नहीं कि छोटी समस्या को तबतक इग्नोर किया जाये जबतक कि वह एक गंभीर बीमारी न बन जाये।
आज की युवा पीढ़ी को देखिए - 50% लड़के पढाई के लिए घर से दूर जाते ही शराब सिगरेट शुरू कर देते हैं। 90% के माँ बाप को पता ही नहीं चलता कि बेटा क्या करता है। सरकार भी सिर्फ सिगरेट के पीछे पड़ी है, शराब को डिस्करेज करने का कोई प्लान नहीं। जबकि सिगरेट धीरे-धीरे मारता है पर शराब तुरत मारती है। लोकल न्यूज़पेपर में जितने रोड एक्सीडेंट्स की खबरें आती हैं, कोई नहीं जानता उनमें से कितनी शराब के कारण होती हैं। ऐसे लड़कों के माँ-बाप जब उनके लिए संस्कारी लड़की ढूंढ रहे होते हैं, लड़के किसी दोस्त के घर शराब के नशे में या तो उल्टियां कर रहे होते हैं या गन्दी गालियाँ दे रहे होते हैं। और लड़कियों को अच्छा समझने का भ्रम तो दिल्ली आने के बाद टूटा। लड़कियों की एक बड़ी संख्या शराब पीती हैं, अधिकांश कभी-कभी पीती हैं, और घर में किसी को नहीं बतातीं।
ऊपर-ऊपर हम युवाओं को दिन प्रतिदिन ज्यादा शिक्षित और बढ़िया से बढ़िया नौकरियों में जाता देख गर्व महसूस करते हैं, पर सतह के नीचे एक दोयम दर्जे के संस्कारहीन समाज का निर्माण होते हुए देख रहे हैं। कम-से-कम आज की पीढ़ी को सही और गलत बताने वाला तो है - उनकी अगली पीढ़ी को शायद वो सुविधा भी न मिले।
एक ही आग्रह है - गलत को गलत कहें - उसके बाद बच्चों की चाहे जो मर्जी। पर उनकी गलतियों को "सही" न ठहराएँ। बच्चों की उम्र सही हो तो कड़ाई भी करें। उनपर मॉडर्न बनने का 'एक्स्ट्रा प्रेशर' न डालें। आपका सबसे बड़ा कर्त्तव्य उन्हें सही शिक्षा देना ही है।
जब भी हम किसी विदेशी व्यक्ति से भारतीय समाज और सभ्यता की बात करते हैं तो नोटिस कीजिये कि हम जिस समाज और कल्चर की बात करते हैं - आज की हमारी युवा पीढ़ी ही उनमें कितना विश्वास करती है?
भारत के छोटे शहरों में अंदर से खोखले होते जा रहे समाज और महानगरों में किसी समाज की ही अनुपस्थिति एक बड़ी चिंता का विषय है। ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने और दूसरों से आगे बढ़ने की ललक में हम अपनी सभ्यता, समाज और संस्कारों से ही कटते चले जा रहे हैं। हम जितनी जल्दी चेतेंगे, हमारा उतना भला होगा। वरना हमारी "भूरे अंग्रेज" बनने की सनक हमें एक दोयम दर्जे की नस्ल बनाकर छोड़ेगी।
- राहुल तिवारी