बेबी
एकदिन बेटी कुछ खोजती दिखी। घर में चारों ओर घूमकर पूछ रही थी - "मेरी बेईबी कहाँ है?" "बेबी" को वह "बेईबी" पुकारती जो सुनने में अजीब प्यारा सा लगता। बाद में पता चला कि वह अपने सारे टेडी-बेअर्स को "बेईबी" बोलती थी पर एक पीले रंग के सबसे छोटे टेडी-बेयर से उसे सबसे ज्यादा प्यार था और वह उसे "येल्लो वाला बेईबी" बोलती।
बुक-मार्क्स
एक समय मैं फ्लिपकार्ट से काफी पुस्तकें खरीदता था और हर किताब में एक सुंदर "बुक-मार्क" मिलता। बुकमार्क्स कई रंगों के होते और उनपर कोई चित्रकारी या कार्टून भी बना होता। इतने सारे बुक मार्क्स हो गए तो मैंने सोचा कि भविष्य में एक दिन मेरे बच्चे इनसे जरूर खेलेंगे और इसलिए मैंने उन्हें सँजोकर रखा था। उम्मीद बिलकुल सही निकली और मेरी बेटी ने सारे बुक मार्क्स ले लिए। अपने मूड के हिसाब से अलग-अलग दिन वह अलग-अलग रंग के बुक मार्क्स खोजती और रंगों के हिसाब से उन्हें एक साथ रखकर सजाती। फिर एक बुकमार्क को उसने अपने "बेबी" टेडी बेयर का "फोन" बना दिया - क्योंकि बुकमार्क फोन की तरह आयताकार था! अब जब वह अपने बेबी टेडी-बेयर को गोद लेती तो उस बुकमार्क वाले "फोन" को भी साथ रखती।
खजाना छिपाना
पत्नी एक खाली कार्टून में अपनी फेंकने योग्य पुरानी किताबें डाल रही थी, ताकि उसे एक साथ रद्दी वाले को बेचा जा सके। मेरे बेटे ने वह कार्टून देखा तो एक नया खेल निकाला - उसे अपने खिलौने जहाँ भी दीखते, वह उन्हें लेजाकर उस डब्बे में डाल देता। सिर्फ यूँ ही नहीं बल्कि उसे अंदर तक ऐसे पहुँचाता ताकि खिलौना बिलकुल दिखाई न दे सके। इससे एक समस्या आई कि कुछ समय बाद वह अपनी बहन के खिलौने भी डब्बे में छिपाने लगा और बेटी अगर लेने की कोशिश करती तो वह बल पूर्वक उसे रोकता। ४-५ दिनों के बाद उसे एक और गुप्त जगह मिली - टीवी टेबल के एकदम नीचे का ड्रावर। फिर वह अपनी कुछ चीजें उसमें भी छिपाने लगा। जैसे कि अपनी बहन से छीने हुए "बुक मार्क्स"!
राहुल तिवारी
No comments:
Post a Comment