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Saturday, September 1, 2018

#Books: शरतचंद्र चटोपाध्याय की पुस्तकें


एक ट्रेन यात्रा के लिए प्लेटफार्म से कोई किताब खरीदनी थी। आजकल बुक स्टॉल्स पर नए 'चीकी' लेखकों की 'लव स्टोरीज' खूब दिखती हैं। एक पच्चीस साल का लेखक जिसके दूध के दाँत भी नहीं टूटे, जब प्यार और रिलेशनशिप्स पर ज्ञान देता हुआ किताब लिखता है तो चिढ़ ही होती है। खैर, नजर गई शरतचंद्र चटोपाध्याय की एक पुस्तक पर - 'लेन देन' पढ़ा तो एक बिलकुल नयी दुनिया दिखी।

वह नयी दुनिया किसी साइंस फिक्शन की तरह काल्पनिक नहीं और हॉलीवुड मूवी की तरह किसी पराए संस्कृति के बोझ तले दबी नहीं थी। उस नयी दुनिया में हर ओर शोर नहीं पर खामोशी की अपनी भाषा थी। जहाँ हर कुछ बिकाऊ नहीं बल्कि त्याग, तपस्या और संस्कार के बंधन थे। ऐसा नहीं कि उस दुनिया में सब खुश थे - कहीं करुणा की नदियाँ और कहीं पीड़ा के कुएँ भी थे। पर पानी और आँसू दोनों में 'पॉल्युशन' नहीं था।

वह 'नयी' दुनिया हमारे पुराने समाज की सच्ची तस्वीर दिखाती थी। जब लोग सच्चे-दिल और भावुक होते थे। जब पैसे के लिए कुछ भी कर गुजरने की किसी ने प्रतिज्ञा नहीं ली थी और जब 'संतोष' नाम की कोई चीज हर दूसरे घर में मिलती थी। वह 'नयी' दुनिया मुझे अच्छी लगी।

अच्छी लगे भी क्यों नहीं - शरतचंद्र की कितनी ही पुस्तकें बॉलीवुड की फिल्म बनकर खूब सफल हुई हैं - जैसे हाल की देवदास और परिणीता। शरतचंद्र (15.09.1876 - 16.01.1938) बांग्ला भाषा के एक महान लेखक थे।

अगली ट्रेन यात्रा में फिर से उनकी एक किताब मिली - कमला। फिर से वही 'नयी दुनिया' और वही जादू।



फुर्सत मिलते ही किताब टटोला; प्रकाशक 'मनोज पब्लिकेशन्स' दिल्ली के ही थे और उनकी एक वेबसाइट भी थी। वेबसाइट पर गया और जितनी मिलीं - 'शरत साहित्य' की कुल २१ पुस्तकें ऑर्डर कर दीं जो कि अमेज़ॉन इत्यादि से आधे से तिहाई कीमत पर मिल रही थीं। दिनों बाद सारी किताबें घर गयीं हैं। और खुशी इतनी है कि क्या कहूँ।

धन्य है भारत और यहाँ का साहित्य।

- राहुल तिवारी