पथ के दावेदार
"पथ के दावेदार" शरत चंद्र चटोपाध्याय की एक उच्च कोटि की रचना है जो उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के ऊपर लिखी थी। इन सब के बीच ये एक विचित्र प्रेम कहानी भी है - अपूर्व और भारती की। इस कहानी का नायक सही मायने में सव्यसाची, जिसे सब डॉक्टर पुकारते थे, ही माना जाना चाहिए। अपूर्व भी नायक है पर शायद उन थोड़े नायकों में से एक है जो "दोषरहित" नहीं है। एक पढ़े लिखे धनाढ्य वर्ग के पर अपनी ही चुनौतियों से जूझता उसका एक विचित्र किरदार है।
कहानी में एक रोचक बात ये है कि भारती जो कि क्रिस्तान हो गई थी (अपने माँ के पुनर्विवाह हेतु किये धर्म परिवर्तन के कारण), उसका ब्रिटिश और यूरोपियों के लिए सहानुभूति रखना। इसी कारण बहुत से लोग ईसाई मिशनरियों को यूरोपी साम्राज्यवाद को छद्म रूप से बढ़ाने का माध्यम ही मानते हैं। इस बात को कहानी के कई मोड़ों पर देखा जा सकता है।
ये कहानी इस लिए भी रोचक है क्योंकि इसका अंत पूर्ण नहीं होता - पाठक सोचते रह सकते हैं कि अपूर्व और भारती की शादी हुई होगी या नहीं।
कुल मिलकर "पथ के दावेदार" आजादी की लड़ाई, साम्यवाद (कम्युनिज्म) की विचारधारा, युरोपियन उपनिवेशवाद, ईसाई मिशनरियों के काम इत्यादि पर रोचक टिपण्णी करती है और शरत चंद्र चटोपाध्याय की एक उच्च कोटि की रचना है।
- राहुल तिवारी
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