'परिणीता' शरत चंद्र चटोपाध्याय द्वारा लिखित एक उपन्यास है जो मूल रूप में सं १९१४ में बांग्ला भाषा में लिखा गया था। मैंने इसका मनोज पब्लिकेशंस द्वारा प्रकाशित हिंदी अनुवाद पढ़ा।
परिणीता की कहानी एक मंत्रमुग्ध करने वाली प्रेम कथा है। शेखर और ललिता के लड़कपन के प्यार से शुरू होकर जब कहानी पेचीदे मोड़ पर पहुँच जाती है तो पाठक परेशान हो जाता है कि कहीं कुछ गलत न हो जाए। गिरीन्द्र थोड़ा सा 'दाल भात में मूसल चंद' जैसा लगता है, तो कभी थोड़ा हिंदी फिल्मों के 'विलेन' जैसा। पर कई मोड़ों के बाद कहानी 'सुखान्त' के साथ खत्म होती है। तब पाठक को ऐसा लगता है जैसे शेखर और ललिता के साथ हो जाने से उसे भी कोई व्यक्तिगत खुशी मिली हो। उपन्यास के पात्र पाठकों के साथ इतना अपनापन बनाने में पूरी तरह सफल होते हैं।
'परिणीता' पर एक फिल्म भी बनी थी। पर वास्तविक उपन्यास की कहानी उस से कई गुना अधिक पवित्र और सुन्दर है। आप भी जरूर पढ़िए।
- राहुल तिवारी
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