Sunday, March 15, 2020

Bihar: Legacy of Mahendra Misir | महेंद्र मिसिर: लोक की मिश्री जैसे मिसिर


भोजपुरी लोक साहित्य और संगीत की चर्चा भिखारी ठाकुर और महेन्द्र मिसिर का नाम लिए बगैर अधूरी ही रहती है। समकालीन रहे भोजपुरी साहित्य के इन महान साधकद्वय पर संपूर्ण प्रदेश को गर्व है। उनकी रचनाओं पर आधारित गीतों को गाकर और जीवनवृत्त पर उपन्यास, कथा-कहानी, नाटक लिखकर शोहरत पाने वाले तमाम कलाकारों, साहित्यकारों और प्रशंसकों की चाह बस यही है कि पूर्वी गीत सम्राट महेन्द्र बाबा को वह सम्मान जरूर मिल जाए जिसके वे हकदार थे।

पूर्वी गीत सम्राट

16 मार्च 1886 को सारण जिला मुख्यालय से 18 किमी उत्तर में जलालपुर प्रखंड के काही मिश्रवलिया गांव में जन्मे महेन्द्र मिसिर अपने पिता पं. शिवशंकर मिश्र के पांच पुत्रों में ज्येष्ठ थे। बचपन से ही मेधावी रहे। पहलवानी, घुड़सवारी के शौकीन मिसिर जी ने कथावाचन, कीर्तन के साथ भोजपुरी, हिंदी-उर्दू गीतकार के रूप में समानांतर पहचान बनाई। गीतकार के रूप में उन्हें लोक ने प्रतिष्ठा दी।

यह जनश्रुति है और भिखारी ठाकुर की जीवनी पर आधारित रचनाओं से पता चलता है कि ठाकुर जी के दिल में महेन्द्र मिसिर के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वे उनकी रचनाओं के कायल थे। यह भी कहा जाता है कि गीत रचना के लिए ठाकुर जी इस पूर्वी गीत सम्राट से समय-समय पर सूत्र भी लेते रहे और उन्हें उस्ताद माना।

प्रकाशन की आस

मिसिर जी की अप्रकाशित रचनाओं- अपूर्व रामायण और कृष्णलीला में उनका मूल दर्शन समाया है। परिजनों की मानें तो कवित्त, दोहे, सवैये, सोरठा आदि छंदों में समाहित महेन्द्र मिसिर का मूल दर्शन अब प्रकाशन की राह पर है। उनके 70 वर्षीय पौत्र रामनाथ मिश्र बताते हैं कि राष्ट्रभाषा परिषद मिसिर जी रचित अपूर्व रामायण का दो भागों में प्रकाशन कर रही है। इसकी पांडुलिपि विभाग को सौंप दी गई है। कृष्ण लीला के प्रकाशन की स्वीकृति भी मिल चुकी है। स्थानीय पत्रकार और मिसिर जी पर ‘गीत जो गाया न जा सका’ उपन्यास के लेखक तीर्थराज शर्मा कहते हैं कि आने वाले समय में इन ग्रंथों के प्रकाश में उनके कृतित्व का नई रोशनी में आकलन होगा। यह बेहद प्रसन्नता की बात है।


मिसिर जी के गीतों को लोक से किताबों की दुनिया में लाने का श्रेय समीपस्थ संवरी बाजार गांव निवासी हिंदी-अंग्रेजी के विद्वान प्राध्यापक प्रो. सुरेश मिश्र को है। प्रो. मिश्र के संपादन में छपे महेन्द्र मिसिर के दो गीत संकलनों और स्मारिकाओं आदि से पिछले दो दशकों से कलाकार व साहित्यकार लाभान्वित हो रहे हैं।

गायन से जिंदा हैं गीत

महेन्द्र मिसिर के इकलौते पुत्र हिकायत मिश्र, इकलौते पौत्र और इकलौते परपौत्र को गायन में रुचि नहीं रही। पर पांच भाइयों वाले मिसिर जी के एक भाई के पुत्र स्व. गौतम मिश्र आकाशवाणी के साथ विभिन्न मंचों से उनके पूर्वी गीत की विरासत आगे बढ़ाते रहे। वर्तमान में मिसिर जी की चौथी पीढ़ी के गायक अजय मिश्र ने यह विरासत संभाल रखी है। परिजनों से इतर गायक कलाकारों में पद्मश्री शारदा सिन्हा का नाम सम्मान से लिया जाता है। इस कड़ी में स्व. संतराज सिंह रागेश, भरत सिंह भारती, ब्रजकिशोर दूबे आदि जैसे लोकगायकों ने पूर्वी गीत गायन में विशिष्ट स्थान बनाया। नई पीढ़ी के भोजपुरी कलाकारों में भी मिसिर जी के पूर्वी गीत गाने की ललक बढ़ी है। इनमें पुरबिया तान की चंदन तिवारी, मनीषा श्रीवास्तव जैसी युवा गायिकाएं शामिल हैं।

कायम है जादू

भोजपुरी गीत-संगीत की महफिल सजी हो तो कार्यक्रम को परवान चढ़ाने के लिए महेन्द्र मिसिर का पूर्वी गायन अनिवार्य माना जाता है। खासकर ननदिया मोरी रे... मोर सांवरिया हो... अंगुरी में डसले बिया नगीनिया रे... जैसे गीत आज भी श्रोताओं को सम्मोहित कर देते हैं।

मिसिर जी का हिंदी-उर्दू साहित्य का भी एक संसार है, जिससे ज्यादातर लोग अनजान हैं। उन्होंने सैकड़ों ग़ज़लें और कविताएं रची हैं। हालांकि प्रो. मिश्र की किताब ‘महेन्द्र मिसिर की प्रतिनिधि कविताओं’ में करीब दो दर्जन ग़ज़लें शामिल हैं। 16 मार्च को बिहार सरकार द्वारा महेन्द्र मिसिर की जयंती समारोह पूर्वक मनाई जाती है, जहां नामी गिरामी कलाकार उनकी रचनाओं को गाकर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। इसके साथ ही मिसिर जी के नाम पर शोध संस्थान की जरूरत है जहां भावी पीढ़ी उनके कलम की गहराई के बारे में जान सके। 

रामेश्वर गोप / दैनिक भास्कर 

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