Showing posts with label kadambini. Show all posts
Showing posts with label kadambini. Show all posts

Monday, September 4, 2017

सहज को सहेजना और निकटता की दूरी - रामानंद 'दोषी'

स्व० रामानंद 'दोषी' (१९२१-१९७२) कवि, साहित्यकार और संपादक रहे हैं। उन्होंने 'कादम्बिनी' पत्रिका का संपादन भी किया और वह अपना संपादकीय 'बिंदु बिंदु विचार' के शीर्षक के साथ लिखते थे। सितम्बर १९६२ के अंक में उन्होंने जो लिखा है, वह बड़ा मार्मिक है:

"महीनों की दूरी मिनटों में लांघकर तुम मेरे पास आ गए हो। आदमी ने धरा का विस्तार सीमित कर दिया है। सागर की तलहटी में तुम्हारे कदम पड़ चुके हैं। प्रचंड वेग से अंतरिक्ष में उड़ान भरते हुए तुम मुझे सन्देश भेज रहे हो। आदमी ने दूरी पर विजय पाई है, व्यवधान की आन तोड़ दी है। गर्व से मेरा वक्ष फूल जाता है, दर्प-दीप्त नेत्र उठाता हूँ कि सहसा शर्म से गर्दन झुका लेता हूँ।

मेरी दृष्टि श्री अमुक पर पड़ गई है। श्री अमुक घर में मेरे पड़ोसी, कार्यालय में सहयोगी और जीवन स्तर में मेरे सहभोगी हैं, परन्तु हमारे बीच की दूरी कम होने में नहीं आती।

दिशाओं का विस्तार सीमित हो गया पर मन की दूरी पर अंकुश नहीं लगा। हमने असाधारण को सहज कर लिए है, किंतु हमसे सहज नहीं सहेजा गया।

हम एक महल बना रहे हैं, उसमे स्फटिक की दीवारें, मणिमुक्ता का फर्श, चन्दन के किवाड़, स्वच्छ नील सरोवर, सभी कुछ तो होगा। नितांत सहज होकर निर्माण में जुटे हैं हम। महल की तैयारी में हम जो बात भूल रहे हैं, वह यह कि उसमें रहेगा कौन? उसमें प्राण-प्रतिष्ठा जो करेगा, उस आदमी को बिगाड़कर महल को संवारना प्रगति नहीं है, फिसलन है - फिसलन, जो हमें तेज तो ले जाती है पर गर्त की ओर। 

अमुक भाई, दूर दिशाओं की ओर भी देखो, गहराईओं को भी रौंद डालो, अंतरिक्ष में भी राजमार्ग बना दो, पर आओ पहले मेरे गले से लग जाओ!

दूर की दूरी हम अकेले-अकेले भी पार कर लेंगे, किन्तु निकटता की दूरी हम दोनों के दूर किए ही दूर होगी।"