Saturday, February 21, 2015

कुछ मुस्कानें हिंदी में

मेरी मिड-लाइफ क्राइसिस


शायद पिछले किसी जन्म में मैं एक सुखी-सम्पन्न बूढ़ा पिता था और उसके कुछ संस्कार बाकी हैं; या फिर ये मेरी 'यूनिक' मिड-लाइफ क्राइसिस है। काफी समय से जब रनबीर कपूर को देखता था (पर्दे पर) तो वो मुझे 'बेटे' जैसा लगता। :) पर हद्द हुई जब मैंने जैकलीन को फिल्म 'रॉय' में देखा (शायद उनकी पहली फिल्म मैंने देखी), तब से वो मुझे अपनी 'बहू' नजर आने लगीं। :) ऐसे मेरे इमेजिनरी परिवार में सोनाक्षी सिन्हा मेरी बड़ी बेटी हैं और आलिआ भट्ट छोटी बेटी। :) जब भी इन दोनों को देखता हूँ, मुझे बेटी जैसी फीलिंग्स आती हैं।  :) खैर, अभी देखते हैं कि ये 'परिवार' कहाँ तक बढ़ता है :)

कौन होगा मेरा दामाद?


कन्वेंशनल विस्डम है कि कोई व्यक्ति जैसा खुद नहीं बन पाता वैसा वह बेटे को बनाना चाहता है। पर मुझे ये कहावत ठीक नहीं लगती (बिना अपनी दिमागी ट्विस्ट डाले)। जैसा कोई व्यक्ति खुद नहीं बन/कर पाया वो उसका 'डाइल्यूटेड वर्जन' कैसे बन/कर सकता है? :) मुझे लगता है कि व्यक्ति जैसा खुद नहीं बन सकता वैसा वो 'दामाद' खोजता है। :) आखिर शौक बड़ी चीज है! तो आप पूछेंगे कि मैंने अपनी काल्पनिक (फ़िल्मी) बेटियों के लिए कैसा दामाद ढूंढा है? मैंने एक तो ढूंढ लिया है - कोई और नहीं बल्कि 'रणवीर सिंह' को! अगर वो मेरा दामाद बनने को तैयार हो जाएँ तो उन्हें जैसी लड़की पसंद हो मैं वैसी लड़की को अपनी (काल्पनिक) बेटी बना लूंगा। :) अब ऐसे में वो "ना" कैसे कह पाएंगे? :)

हाय मेरा रसगुल्ला प्रेम


हाल ही में मैं अपने साले-साहब की शादी में सम्मिलित हुआ। विधि-व्यवहार के अंत में शायद "कुछ मीठा हो जाए" के बहाने वधू पक्ष की महिलाएं दूल्हे के भाइयों के मुँह में एक बहुत बड़ा सा रसगुल्ला ठूस रही थीं। मेरी बारी आई तो मैंने जल्दी से बड़ा रसगुल्ला गटकाया और मेरी ऑंखें उस ओर अपनेआप चली गयीं जिधर रसगुल्ले का डब्बा रखा था।  :) मैंने सोचा क्या पता एक और आ जाए; पर हाय निराशा! :) ये सारी दुनिया पेटुओं के टैलेंट को अंडर-एस्टीमेट क्यों करती है? 

छोटी बच्ची - बड़ा चप्पल 



सुबह की सैर पर एक छोटी बच्ची को अपने दादाजी के साथ रस्ते पर जाते देखा। उसकी कानों में चांदी की सुन्दर बालियाँ थीं और उसके ऊपर-नीचे करते छोटे पैरों में टुन-टुन की आवाज करती प्यारी सी पायल। उसके एक हाथ को दादाजी ने प्यार से थाम रखा था और दूसरे से वो शायद अपने पापा के मोटरसाइकिल की चाभियाँ लेकर चल रही थी। शायद सुबह-सुबह उसने पापा से मोटरसाइकिल पर घुमाने की जिद्द की होगी और दादाजी उसका मन रखने के लिए उसे अपने साथ सैर पर लेकर निकले होंगे। पर सबसे मजेदार बात ये नहीं - उसके चप्पल थे! उसने बहुत बड़े-बड़े चप्पल पहन रखे थे - शायद अपनी माँ के! उसके नन्हें पैर जब बड़े चप्पलों के साथ चलते तो लगता मानो प्रकृति उसकी पदचाप से गति मिलाकर अपनी साँसें ले रही हो। बच्चों को बड़े होने का बहुत शौक होता है, है ना? पर वो ये नहीं जानते कि बचपन ही उनके सबसे मजे के दिन होते हैं! पर शायद उनके न जानने में हीं दुनिया की भलाई छिपी हो - क्योंकि अगर वो ये जान जाते तो शायद कभी बड़े ना होने की जिद्द ठान लेते! फिर तो कोई दादाजी भी उन्हें मना नहीं पाते। :)

© राहुल

1 comment:

Unknown said...

Nice post
I appreciate this

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