एक इमोशनल यानि भावुक इन्सान के लिए ये जीवन कितना कठिन और दिलचस्प (एक साथ) हो सकता है - बाकी लोग कल्पना भी नहीं कर सकते। वह दुनिया को एक अलग नजरिए से देखता है। या यूँ कहें कि जहाँ बाकी लोग चीजें 'देखते' हैं, वो चीजें 'महसूस' करता है।
जहाँ बाकी लोग यदि कहीं जाने से खुश और एक्साइटेड होते हैं, वह जो छूट रहा होता है उससे खेदग्रस्त होता है। और ऐसा बचपन से होता है। स्कूल के हर छूटते क्लास से, हर बदलने वाले स्कूल से, स्कूल के हर बच्चे से, स्कूल की दीवार से, उसके नाम से, उसके डरावने टीचर्स से, यहाँ तक कि खस्ताहाल स्कूल-रिक्शे से - हर किसी से उसका एक "कनेक्शन" हुआ करता है। मुहल्ले के चिल्लाने वाले खड़ूस बूढ़े पड़ोसी से, अच्छी बड़ी दीदी से, सारे के सारे चाचा-चाचियों से, मुहल्ले की पतली गली से, गली की हर मोड़ से, मोड़ के पास पानी से भरे गड्ढे से, बगल की टूटती दीवार से, दीवार के पास सूखे पत्तों की ढ़ेर से, ढ़ेर में कभी लगने वाली आग से निकलते धुएँ से, और धुएँ की महक से - हर किसी से उसका एक "कनेक्शन" होता है। और एक बार कनेक्शन हुआ तो अब बस - जीवन भर उसे साथ ही रहना है। जिस बात से लोगों को 'बुरा' लग सकता है - उससे वह व्यथित होकर रोता है। इमोशन्स और आंसुओं का बड़ा पक्का रिश्ता है, चाहे दुःख के हों या खुशी के।
हालाँकि इमोशन्स एक तरह से इंसान को थकाते हैं और भावुक इंसान को ये बोझ बनकर खूब थकाते हैं, इनके कई फायदे भी हैं। अति-भावुक लोगों का इंट्यूशन (सहज बोध) बहुत स्ट्रॉन्ग (प्रबल) होता है - ये सच्चे और झूठे लोगों को बहुत जल्दी पहचान लेते हैं। ये सब जान लेते हैं। आप इन्हें अपनी सच्ची भावनाएँ समझा सकते हैं जो दूसरे नहीं समझ सकते। ये अक्सर विनम्र होते हैं और दूसरों की चिंता करते हैं। चीजों को गहन रूप से समझने के कारण अक्सर ये परफेक्शनिस्ट होते हैं। और ये बहुत क्रिएटिव (रचनात्मक) होते हैं। क्रिएटिविटी के अलावा इनकी इमेजिनेशन (कल्पनाशक्ति) कमाल की होती है - इसलिए इन्हें "आउट-ऑफ़-बॉक्स" विचार आसानी से आते हैं। चीजों को "महसूस" करने के कारण ये अक्सर ज्यादा "फुलफिल्ड" (अंदर से भरे-पूरे) रहते हैं। दूसरों को और कभी-कभी इन्हें स्वयं भी दया या सहानुभूति हो सकती है पर अक्सर इनकी 'अपनी दुनिया' बहुत ही क्रिएटिव और इंटरेस्टिंग होती है। और अगर इमोशंस को संभालना इन्होंने सीख लिया तो उसकी अधिकता से होनेवाले नुकसानदेह प्रभावों से वो अपने को बचा भी सकते हैं।
रिसर्चर्स (शोधकर्ता) बताते हैं कि इमोशनल लोगों का दिमाग कुछ अलग तरीके से काम करता है और विश्व में करीब २०% लोग अति-भावुक होते हैं। समय-समय पर हम सब अपने आप को अति-भावुक कह सकते हैं पर सच्चा भावुक व्यक्ति इसे कभी-कभी नहीं "हर समय" महसूस करता है। बाकी लोग बस उसके कुछ झलक ही देख पाते होंगे।
अंत में बस ये कहूँगा - जीवन अगर "इंटरेस्टिंग" (दिलचस्प) है तो भावुक लोगों की दुनिया "निराली" है। इमोशन्स यानि भावों से ही इंसानियत नजर आती है और मानव समाज अपने सर्वोत्तम गुणों को आज भी बचाए हुए है। काश दूसरे भी थोड़े और संवेदनशील बनें ताकि उनकी दुनिया इनकी दुनिया से ज्यादा अलग न रह पाए।
- राहुल तिवारी
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