नेताओं की हालत पर एक जाने माने कवि मुकेश कुमार सिन्हा अपनी कविता "वोटों के भिखारी" में लिखते हैं:
"कभी कुछ हजारों की संपत्ति वाले फटेहाल नेताजी
अब बस कुछ अरबों में खेलते हैं
लेकिन आज भी चुनाव आने पर
वोटों के लिए भिखारी बन तरसते हैं।"
देश में जो प्रगति हुई है, उसमें गरीब कहाँ खो गया उसपर मानो एक कटाक्ष के तौर पर अपनी कविता "लैंड क्रूजर का पहिया" में लिखते हैं:
"दूर पड़ी थी सफ़ेद कपडे में ढकी लाश
पर मीडिया की ब्रेकिंग न्यूज़
में नहीं थी मनसुख की मैय्या ...
टी आर पी कहाँ बनती है भूखी बेसहारा माँ से
इस लिए टीवी स्क्रीन पर चिल्ला रहे थे न्यूज़ रीडर ...
और बार बार सिर्फ दिख रहा था स्क्रीन पर
चमकता लैंड क्रूजर व उसका निर्दयी पहिया "
"कभी कुछ हजारों की संपत्ति वाले फटेहाल नेताजी
अब बस कुछ अरबों में खेलते हैं
लेकिन आज भी चुनाव आने पर
वोटों के लिए भिखारी बन तरसते हैं।"
देश में जो प्रगति हुई है, उसमें गरीब कहाँ खो गया उसपर मानो एक कटाक्ष के तौर पर अपनी कविता "लैंड क्रूजर का पहिया" में लिखते हैं:
"दूर पड़ी थी सफ़ेद कपडे में ढकी लाश
पर मीडिया की ब्रेकिंग न्यूज़
में नहीं थी मनसुख की मैय्या ...
टी आर पी कहाँ बनती है भूखी बेसहारा माँ से
इस लिए टीवी स्क्रीन पर चिल्ला रहे थे न्यूज़ रीडर ...
और बार बार सिर्फ दिख रहा था स्क्रीन पर
चमकता लैंड क्रूजर व उसका निर्दयी पहिया "
2 comments:
bahut badiya ..
dhanyawad Rahul, meri panktiyon ko share karne ke liye ... thanx
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