कातिल
कत्ल कर रहे कातिल कातिलों का
और ताली बजाती आत्माएँ,
जैसे मुक्त हुई हों
मारे जा रहे मारने वाले
मारने वाले मार रहे हैं,
एक ही बात है
आतंक चाहे जिस रंग-रूप का हो
खाकी हो या सफेद चेक टीशर्ट पहने
लंगड़ाता हो या हकलाता, आतंक होता है
बेहतर हैं वो भेड़िये
जो भेड़िये की खाल में होते हैं
वो नहीं जो असली दाँत छिपा लें, मुस्कान के पीछे
उस कातिल ने कम से कम मंदिर की लाज रखी
रोकर पछताया
हमने मंदिर से उठाकर कातिल को भगवान बनाया
अधर्म के ठेकेदार
अब देश के बनेंगे
लोगों पर ठप्पा लगेगा, और मार दिए जाएँगे
और मासूम बच्चों के माथों पर लिख दिया जायेगा
"तुम्हारा बाप चोर था"
पासपोर्ट की तौर पर काम आएगा
जब पुलिस कत्ल करेगी
और बदमाश संसद जायेंगे
कानून किताबों में पड़ा पड़ा थक जाएगा
और आम इंसान करेगा,
इज्जत की
मौत का इंतजार
- राहुल तिवारी
1 comment:
समय का असर
क्या क्या कब कब होगा, पता नहीं।
अच्छी कविता
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