बन्दूक
बन्दूक नें बन्दूक को गोलियाँ मारीं
तीन सीने में
और एक उस हाथ पर
जिसे बन्दूक ने थाम रखा था
बन्दूक नें बन्दूक को गोलियाँ मारीं
पूरा शरीर छलनी कर गिराया
और फिर एक टाँग कुल्हाड़ी से काटी
जिसे बन्दूक अपने साथ लेकर आया था
बन्दूक ने कुछ छोटे बन्दूक भी मारे
खेतों में भगा-भगा कर
जिन खेतों में वो कभी
गन्ने, मूली चुरा कर खाया करते
पर इतने बन्दूक आए कहाँ से?
कुछ गुलेल बड़े होकर बन्दूक बन गए थे
कुछ कलम जिन्होंने हथियार लिखा था
कुछ दातून जो तलवार बन गए
कुछ अनाज के गोदाम गोला-बारूद से पट गए थे
कुछ गमछे जो गिरफ्त बन गए थे
कुछ झूले जो गर्दन की रस्सियाँ
कुछ खुरपी-कुदाल जिन्होंने जान लेना सीख लिया था
कुछ घर के आँगन जो बंकर बन कर छिप गए थे
कब हुआ ये सब; हमने पहले क्यों नहीं देखा?
जब हम मंदिर मस्जिद की जंग में
दाढ़ी चुटिया या मूछों में
घूँघट और जीन्स में फंसे थे
या जब हम मकबूल फ़िदा हुसैन को क़तर छोड़ने गए थे
जब हम नारों, वादों में लगे थे
तिलक, तराजू और मिट्टी तेल में जंग छिड़ी थी
जब हम काल्पनिक ड्रैगन्स का पीछा कर रहे थे
या फिर तब, जब हमने पटाखों में प्रदूषण का आविष्कार किया था
तब हमारे दिलों में सेंध लग रही थी
दीमक हमारे ईमान खा रहे थे
बेईमानी का जहर जब हमें कृत्रिम
गंगा स्नान करा रहा था
जब हम दवा की तरह मदिरापान रहे थे
बच्चों को नानियाँ मोबाइल में वीडियो गेम खिलाने लगी थीं
जब हमने बूढ़े पिता को ऑंखें दिखाना सीख लिया था
और तब, जब माएँ स्त्री जाति का हिस्सा बन गयी थीं
तब, जब हम कंकड़ के भाव हीरे बेच
बचे पैसों को सट्टे में गवाँ रहे थे
तब मेरे दोस्त, जब हमने नीम के पेड़ काटकर कैक्टस बोये
और कांटें निकालने के लिए नौकर रख रहे थे
हमने बन्दूक बोये,
अब बन्दूक काट रहे हैं
बन्दूक हमें बाँटकर
बंदूकों में से बन्दूक छाँट रहे हैं
~ राहुल तिवारी
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