Sunday, November 3, 2019

क्या दिवाली पर पटाखे जलाना गलत है?

क्या दिवाली पर पटाखे जलाना गलत है? यह सवाल आजकल सबके मन में है। खासकर सोशल मीडिया पर इस बारे में हर दिवाली काफी बहस छिड़ती है। यहाँ मैं अपने विचार संक्षेप में लिखता हूँ।

पटाखे प्रदूषण (पॉल्यूशन) फैलाते हैं - यह सच है। पर यह भी सच है कि सिर्फ दिवाली के पटाखों का ही विरोध होता है, बाकियों का नहीं। दशहरा, शादी-ब्याह, कोई बड़ा उत्सव, क्रिसमस, क्रिकेट मैच में जीत, खेल आयोजन, नया साल - इन सब मौकों पर पटाखे छूटते हैं, पर विरोध सिर्फ दिवाली के पटाखों का ही होता है। राइट-विंग के लोग या कन्जर्वेटिव्स (परम्परावादी लोग) सोचते हैं कि ये हिंदुत्व का विरोध है इसलिए वो दिवाली के पटाखों का समर्थन करते हैं। पर असल में बात कुछ और है।

जहाँ तक यह बात मुझे समझ में आती है - दिवाली के पटाखों का विरोध इसलिए होता है क्योंकि हमारे देश में हर जगह दिवाली मनाई जाती है, इसलिए उस दिन एक ही समय बहुत ज्यादा पटाखे जलाने से सच में पॉल्यूशन की ज्यादा समस्या होती है। बाकी अवसरों पर कम समस्या होती है इसलिए विरोध नहीं होता है। जिस तरह बकरी और बाघ दोनों में जान है पर बकरी को मारना गुनाह नहीं पर बाघ को मारना गुनाह है - क्योंकि कुछ बकरियों के मरने से कोई बड़ी समस्या नहीं होगी पर कुछ बाघ मर जाएँ तो उनकी प्रजाति विलुप्त हो जाएगी। उसी तरह बाकी अवसरों पर पटाखे जलाने पर कोई खास समस्या नहीं होती है पर घनी आबादी वाले जगहों पर दिवाली के दिन एक साथ पटाखे जलाने से समस्या हो जाती है - इसलिए बाकी अवसरों पर और कम जनसँख्या वाले जगहों पर पटाखे जलाना गुनाह नहीं, पर कुछ बड़े शहरों में (घनी आबादी के कारण), अदालत ने पटाखों पर "बैन" लगा कर गुनाह बता दिया - ये बात समझी जा सकती है। और इसमें कुछ गलत नहीं।

तो हम यह कह सकते हैं कि कम आबादी वाले शहर, गाँव, या विदेश के शहर (जहाँ अप्रवासी भारतीय रहते हैं), या बड़े शहरों के ऑउटस्कर्ट्स, जहाँ अधिक जनसँख्या का घनत्व नहीं होता और इसलिए पटाखों का प्रदूषण कोई बड़ी समस्या नहीं है, ऐसी जगहों पर पटाखे जलाना गलत नहीं है। और घनी आबादी वाले शहर या इलाके, या ऐसे जगह जो पहले से ही प्रदूषित हों (जैसे दिल्ली), ऐसे जगहों पर दिवाली के पटाखे जलाना गलत माना जाना चाहिए।

- राहुल तिवारी 

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